धर्म एवं दर्शन >> शाबर मन्त्र सिद्धि शाबर मन्त्र सिद्धिराधाकृष्ण श्रीमाली
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सामान्य भाषा में सर्वसाधारण के लिए ऐसे मन्त्रों की जानकारी, जो चमत्कारी हैं,,,
दो शब्द
एक समय था जब हर आम व खास समस्या का हल वैदिक मंत्रों व ऋचाओं में ढूंढा जाता था। धीरे-धीरे विदेशी आक्रमणों के कारण भारतीय संस्कृति पर कुठाराघात होता गया। हम अपने ही घर में पराये हो गये। संस्कृत भाषा दुरूह समझी जाने लगी। दैवज्ञों, महर्षियों, वेद-वेत्ताओं, विद्वानों ने तब पुराणोक्त मंत्रों का निर्माण किया। ये मंत्र कुछ सरल थे, जिनमें समुचित अर्थ निहित था। कालान्तर में अंग्रेजों ने हम पर आक्रमण कर शासन करना प्रारम्भ किया। मेकॉले की शिक्षा-नीति के कारण संस्कृति का ह्रास होने लगा। संस्कृत भाषा के स्थान पर अंग्रेजी भाषा पनपने लगी। पुराणोक्त मंत्र कठिन जान पड़ने लगे, तब!
तब शाबर मंत्र प्रचलन में आये। इन मंत्रों की साधना में कोई लंबा-चौड़ा विधान नहीं था। ये मंत्र ठेठ देहाती भाषा में आम बोलचाल की भाषा में होते थे। शाबर मंत्रों का जन्म प्रायः सिद्ध-साधकों के द्वारा ही हुआ है। यही कारण है कि मंत्र समापन के समय देवता को विकट आन दी जाती है। इसे देख बाल सुलभ चंचलता का स्मरणः हो आता है। जैसे बालक हठपूर्वक अनर्गल बात कहकर अपना काम निकाल लिया करते हैं। ठीक इसी प्रकार स्वयंसिद्ध साधकों ने शास्त्रोक्त मंत्रों का सहारा न लेकर अपनी समस्या को अपनी ही भाषा में कहा और उस समस्या की पूर्ति न होने की स्थिति में एक हठी बालक की तरह अनर्गल-सी आन रखकर अपनी समस्या पूर्ति कर ली।
राधाकृष्ण श्रीमाली
ज्योतिष अनुसंधान केन्द्र
19/20 ए, हाई कोर्ट कॉलोनी जोधपुर (राज०)
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